Vimal Vachan
Friday, 25 April 2014
मैं वो हूँ क्यूँ नहीं जैसा हूँ मैं वैसा।
झूठ बोलते थे फिर भी सच्चे थे हम,
ये उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम
आज सच्च कहते है फिर भी झूठे है हम,
सबको अपना कहता हूँ फिर भी गैर है हम
ये यिन दिनों की बात है
जब बच्चे नहीं रह गए हम
फर्क हुआ है क्यूँ ऐसा
मैं वो हूँ क्यूँ नहीं
जैसा हूँ मैं वैसा।
------विमल चन्द्र
2 comments:
Anushka
3 May 2014 at 20:19
lovely poem
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Vimal Chandra
3 May 2014 at 23:13
thank you
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lovely poem
ReplyDeletethank you
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