आप किस श्रेणी के साधक हैं ?
चार प्रकार के मिट्टी के बर्तन होते हैं -
पहले प्रकार के बर्तन के तले मे छिद्र होते हैं। आप उन बर्तनों में चाहे जितना पानी भरते जाएँ , परन्तु वह उनके भीतर रुकता नहि हैं। सारा जल बहार बह जाता है। इसी प्रकार के व्यक्ति , जब धर्म के विषय में सुनते हैँ , तो उनके भीतर भी कूछ नहीं ठहरता। वे एक कान से सुनते और दुसरे से बाहर निकाल देते हैं।
दूसरे प्रकार के बर्तनों में दरारें होती हैं। जब इन बर्तनों में जल डाला जाता है, तो वह तुरन्त बाहर नहीं निकलता और नहीं बहुत देर तक भीतर रूकता है। वह धीरे धीरे रिसता रहता है , जब तक क बर्तन पुरा खाली न हो जाए। यह उन व्यक्तियों की स्थिति है , जो सद्गुरु द्वारा दि गई धर्म-शिक्षाओं को सहेजने क प्रयास तो करते हैं , परन्तु उन पर दृढ़तापूर्वक चल नहि पाते। फलतः धीरे धीरे उन्हें भूल बैठते हैं।
तीसरे श्रेणी में वे बर्तन आते हैं , जो पहले से ही मलिन (गंदे ) जल से मुँह तक भरे होते हैँ। इसलिए उनमे ताजा -स्वच्छ जल नहीं भर जा सकता। ये वे व्यक्ति होतें हैं, जो अपने हि विचारोँ और धारनाओं मे इस कदर जकरे होते हैं कि सदगुरुं द्वारा दी गई धार्मिक शिक्षाओं को ग्रहण मे विफल हैँ। दुर्भाग्यवश उस ठहरे हुये मलिन जल से दूर्गंध उठने लगती है। कहने का भाव की ऐसे व्यक्ति विकृत व मिथ्या विचारधाराओं और सिद्धांतोँ मे ही जीवन व्यतीत कर देते हैं। ज्ञान - सुगन्धि से परिपूर्ण जीवन जीने मे असफल हो जाते हैं।
चौथी श्रेणी बर्तनों मे न तो किसि प्रकार के छिद्र होते हैं और न ही दरारें। उनमे मलिन जल की एक बून्द भी नहि होती। इसलिए वे अपने में डाले गए ताजे और स्वच्छ जल को पुर्ण रुप से सहेज पाते हैं। इस प्रकार के लोग सद्गुरु द्वारा दी गई धार्मिक शिक्षाओं के अनुरुप ही जीवन व्यतीत करते हैं और अपनी मंजिल को प्राप्त करते हैं।
-महात्मा बुद्ध
-----विमल चन्द्र
दूसरे प्रकार के बर्तनों में दरारें होती हैं। जब इन बर्तनों में जल डाला जाता है, तो वह तुरन्त बाहर नहीं निकलता और नहीं बहुत देर तक भीतर रूकता है। वह धीरे धीरे रिसता रहता है , जब तक क बर्तन पुरा खाली न हो जाए। यह उन व्यक्तियों की स्थिति है , जो सद्गुरु द्वारा दि गई धर्म-शिक्षाओं को सहेजने क प्रयास तो करते हैं , परन्तु उन पर दृढ़तापूर्वक चल नहि पाते। फलतः धीरे धीरे उन्हें भूल बैठते हैं।
तीसरे श्रेणी में वे बर्तन आते हैं , जो पहले से ही मलिन (गंदे ) जल से मुँह तक भरे होते हैँ। इसलिए उनमे ताजा -स्वच्छ जल नहीं भर जा सकता। ये वे व्यक्ति होतें हैं, जो अपने हि विचारोँ और धारनाओं मे इस कदर जकरे होते हैं कि सदगुरुं द्वारा दी गई धार्मिक शिक्षाओं को ग्रहण मे विफल हैँ। दुर्भाग्यवश उस ठहरे हुये मलिन जल से दूर्गंध उठने लगती है। कहने का भाव की ऐसे व्यक्ति विकृत व मिथ्या विचारधाराओं और सिद्धांतोँ मे ही जीवन व्यतीत कर देते हैं। ज्ञान - सुगन्धि से परिपूर्ण जीवन जीने मे असफल हो जाते हैं।
चौथी श्रेणी बर्तनों मे न तो किसि प्रकार के छिद्र होते हैं और न ही दरारें। उनमे मलिन जल की एक बून्द भी नहि होती। इसलिए वे अपने में डाले गए ताजे और स्वच्छ जल को पुर्ण रुप से सहेज पाते हैं। इस प्रकार के लोग सद्गुरु द्वारा दी गई धार्मिक शिक्षाओं के अनुरुप ही जीवन व्यतीत करते हैं और अपनी मंजिल को प्राप्त करते हैं।
-महात्मा बुद्ध
-----विमल चन्द्र
No comments:
Post a Comment