Saturday 14 September 2019


जो रिश्ते बिजली के चले जाने से वो पूरी रात छतों पे साथ गुजारना ।
अब दीवारों के बीच कैद होके रह गयी ।।
जो नींद एक दूसरे के थपकियों और किस्से कहानियों से आया करती थी ।
अब हाथों में थमे यंत्रों में सिमट के दम तोड़ दी ।।
जो कमरा सबको अपने मे समाये बड़ी इठलाता था ।
अब भवन हो के भी सबको खुद में सिमट न सका।।
बचपन मे बस किसीके साथ होने भर से, कोई अपना हो जाया करता था।
अब भावनाएं इस कदर रूठी की अपने होके भी अपनापन खो बैठे ।।
"रिश्तें तो प्यार से फलती फूलती है, प्यार एक दूसरे के त्याग से और त्याग एक दूसरे के प्रति भावनाओं से और सच्ची भावनाएं एक इंसान होने का पूरक है"
(कहीं न कहीं हम सब आदमियत से बैर कर बैठे है।)