Wednesday 30 April 2014

एक बच्चे कि मासूम सवाल -"मनुष्य की क्या कीमत होती है ??"

लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे 
एक बालक ने अचानक ही अपने पिता से पुछा – 
“पिताजी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है ?”

पिताजी एक छोटे से बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर 
हैरान रह गये.

फिर वे बोले “बेटे एक मनुष्य की कीमत आंकना बहुत 
मुश्किल है, वो तो अनमोल है.”

बालक – क्या सभी उतना ही कीमती और महत्त्वपूर्ण हैं ?

पिताजी – हाँ बेटे.

बालक कुछ समझा नही उसने फिर सवाल किया – तो
फिर इस दुनिया मे कोई गरीब तो कोई अमीर क्यो है ?
किसी की कम रिस्पेक्ट तो कीसी की ज्यादा क्यो होती है?

सवाल सुनकर पिताजी कुछ देर तक शांत रहे और फिर
बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड लाने को कहा.

रॉड लाते ही पिताजी ने पुछा – इसकी क्या कीमत होगी?
बालक – 200 रूपये.

पिताजी – अगर मै इसके बहुत से छोटे-छोटे कील बना दू
तो इसकी क्या कीमत हो जायेगी ?

बालक कुछ देर सोच कर बोला – तब तो ये और महंगा
बिकेगा लगभग 1000 रूपये का .

पिताजी – अगर मै इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग
बना दूँ तो?

बालक कुछ देर गणना करता रहा और फिर एकदम से
उत्साहित होकर बोला ” तब तो इसकी कीमत बहुत
ज्यादा हो जायेगी.”

फिर पिताजी उसे समझाते हुए बोले – “ठीक इसी तरह
मनुष्य की कीमत इसमे नही है की अभी वो क्या है,
बल्की इसमे है कि वो अपने आप को क्या बना सकता है.”

बालक अपने पिता की बात समझ चुका था .

Friends अक्सर हम अपनी सही कीमत आंकने मे गलती कर
देते है. हम अपनी present status को देख कर अपने आप को
valueless समझने लगते है. लेकिन हममें हमेशा अथाह शक्ति
होती है. हमारा जीवन हमेशा सम्भावनाओ से भरा होता है. हमारी
जीवन मे कई बार स्थितियाँ अच्छी नही होती है पर इससे हमारी
Value कम नही होती है. मनुष्य के रूप में हमारा जन्म इस दुनिया
मे हुआ है इसका मतलब है हम बहुत special और important हैं .
हमें हमेशा अपने आप को improve करते रहना चाहिये और अपनी
सही कीमत प्राप्त करने की दिशा में बढ़ते रहना चाहिये."

एक लड़की की कठिन समय में सकरात्मक सूझ-बझ का परीचय!

बहुत समय पहले की बात है,
किसी गाँव में एक किसान
रहता था । उस किसान की एक
बहुत
ही सुन्दर
बेटी थी । दुर्भाग्यवश,
गाँव
के जमींदार से उसने बहुत सारा धन
उधार लिया हुआ था । जमीनदार
बूढा और कुरूप था । किसान
की सुंदर
बेटी को देखकर उसने
सोचा क्यूँ न कर्जे के बदले किसान के
सामने उसकी बेटी से
विवाह
का प्रस्ताव रखा जाये.जमींदार
किसान के पास गया और उसने
कहा – तुम
अपनी बेटी का विवाह
मेरे साथ कर दो, बदले में मैं
तुम्हारा सारा कर्ज माफ़ कर दूंगा ।
जमींदार की बात सुन
कर किसान
और किसान की बेटी के
होश उड़ गए

तब जमींदार ने कहा – चलो गाँव
की पंचायत के पास चलते हैं और
जो निर्णय वे लेंगे उसे हम
दोनों को ही मानना होगा ।
वो सब मिल कर पंचायत के पास गए
और उन्हें सब कह सुनाया.
उनकी बात
सुन कर पंचायत ने थोडा सोच विचार
किया और कहा- ये
मामला बड़ा उलझा हुआ है अतः हम
इसका फैसला किस्मत पर छोड़ते हैं .
जमींदार सामने पड़े सफ़ेद और काले
रोड़ों के ढेर से एक काला और एक
सफ़ेद रोड़ा उठाकर एक थैले में रख
देगा फिर लड़की बिना देखे उस थैले
से
एक रोड़ा उठाएगी, और उस आधार
पर उसके पास तीन विकल्प होंगे :
१. अगर वो काला रोड़ा उठाती है
तो उसे जमींदार से
शादी करनी पड़ेगी और
उसके
पिता का कर्ज माफ़ कर
दिया जायेगा.
२. अगर वो सफ़ेद पत्थर
उठती है
तो उसे जमींदार से
शादी नहीं करनी पड़ेगी और
उसके
पिता का कर्फ़ भी माफ़ कर
दिया जायेगा.
३. अगर लड़की पत्थर उठाने से
मना करती है तो उसके
पिता को जेल भेज दिया जायेगा।
पंचायत के आदेशानुसार जमींदार
झुका और उसने दो रोड़े उठा लिए ।
जब वो रोड़ा उठा रहा था तो तब
किसान की बेटी ने
देखा कि उस
जमींदार ने दोनों काले रोड़े
ही उठाये हैं और उन्हें थैले में
डाल
दिया है।
लड़की इस स्थिति से घबराये
बिना सोचने लगी कि वो क्या कर
सकती है, उसे तीन
रास्ते नज़र आये:
१. वह रोड़ा उठाने से मना कर दे और
अपने पिता को जेल जाने दे.
२. सबको बता दे कि जमींदार
दोनों काले पत्थर उठा कर
सबको धोखा दे रहा हैं.
३. वह चुप रह कर काला पत्थर उठा ले
और अपने पिता को कर्ज से बचाने के
लिए जमींदार से
शादी करके
अपना जीवन बलिदान कर दे.
उसे
लगा कि दूसरा तरीका सही है,
पर तभी उसे एक और
भी अच्छा उपाय
सूझा, उसने थैले में अपना हाथ
डाला और एक रोड़ा अपने हाथ में ले
लिया और बिना रोड़े की तरफ देखे
उसके हाथ से फिसलने का नाटक
किया, उसका रोड़ा अब
हज़ारों रोड़ों के ढेर में गिर
चुका था और उनमे
ही कहीं खो चुका था .लड़की ने
कहा – हे भगवान ! मैं
कितनी बेवकूफ
हूँ । लेकिन कोई बात नहीं .आप
लोग
थैले के अन्दर देख लीजिये कि कौन
से
रंग का रोड़ा बचा है, तब
आपको पता चल जायेगा कि मैंने
कौन सा उठाया था जो मेरे हाथ से
गिर गया.थैले में बचा हुआ
रोड़ा काला था, सब लोगों ने मान
लिया कि लड़की ने सफ़ेद पत्थर
ही उठाया था.
जमींदार के अन्दर इतना साहस
नहीं था कि वो अपनी चोरी मान
ले । लड़की ने
अपनी सोच से असम्भव
को संभव कर दिया ।


मित्रों, हमारे जीवन में
भी कई बार
ऐसी परिस्थितियां आ
जाती हैं
जहाँ सब कुछ धुंधला दीखता है,
हर
रास्ता नाकामयाबी की ओर
जाता महसूस होता है पर ऐसे समय में
यदि हम सोचने का प्रयास करें तो उस
लड़की की तरह
अपनी मुशिकलें दूर कर
सकते हैं ।   

Sunday 27 April 2014

आप किस श्रेणी के साधक हैं ?

आप किस श्रेणी के साधक हैं ?

चार प्रकार के मिट्टी  के बर्तन होते हैं -


पहले  प्रकार के बर्तन के तले मे छिद्र  होते हैं।  आप उन बर्तनों में चाहे जितना पानी भरते जाएँ , परन्तु वह उनके भीतर रुकता नहि हैं। सारा जल बहार बह जाता है। इसी प्रकार के व्यक्ति , जब धर्म के विषय में  सुनते हैँ , तो उनके भीतर भी  कूछ  नहीं  ठहरता। वे एक कान से सुनते और दुसरे से बाहर निकाल देते हैं।

दूसरे प्रकार  के बर्तनों में दरारें होती हैं।  जब इन बर्तनों  में जल डाला जाता है, तो वह तुरन्त  बाहर नहीं निकलता और नहीं बहुत देर तक भीतर रूकता है।  वह धीरे धीरे रिसता रहता है , जब तक क बर्तन पुरा खाली  न हो जाए। यह उन व्यक्तियों की स्थिति है , जो सद्गुरु द्वारा दि गई धर्म-शिक्षाओं को सहेजने क प्रयास तो करते हैं , परन्तु उन पर दृढ़तापूर्वक चल नहि पाते।  फलतः धीरे धीरे उन्हें भूल बैठते हैं।

तीसरे    श्रेणी में वे बर्तन आते हैं , जो पहले से ही मलिन (गंदे ) जल से मुँह  तक भरे होते हैँ।  इसलिए उनमे ताजा -स्वच्छ  जल नहीं भर जा सकता।  ये वे व्यक्ति होतें हैं, जो अपने हि विचारोँ और धारनाओं मे इस कदर जकरे होते हैं कि सदगुरुं द्वारा दी गई धार्मिक शिक्षाओं को ग्रहण मे विफल  हैँ।  दुर्भाग्यवश उस ठहरे हुये मलिन जल से दूर्गंध उठने लगती है। कहने का भाव की ऐसे व्यक्ति  विकृत व मिथ्या विचारधाराओं और सिद्धांतोँ मे ही जीवन व्यतीत कर देते हैं।  ज्ञान - सुगन्धि से परिपूर्ण जीवन जीने मे असफल हो जाते हैं।

चौथी  श्रेणी बर्तनों मे न तो किसि प्रकार के छिद्र होते हैं और न ही दरारें।  उनमे मलिन जल की एक बून्द भी  नहि होती। इसलिए वे अपने में डाले गए  ताजे और स्वच्छ जल को पुर्ण रुप से सहेज पाते हैं। इस प्रकार के लोग सद्गुरु द्वारा दी गई धार्मिक शिक्षाओं के अनुरुप ही जीवन व्यतीत करते हैं और अपनी मंजिल को प्राप्त करते हैं।

                      -महात्मा बुद्ध 

-----विमल चन्द्र     

मेरी विचार - अपने आपको ऐसा पात्र बनाए कि ...........


"मेरी विचार "

(सहमत होंगे तो जरुर शेयर और अपनी राय कमेंट मे दे )
:------
ऐसे कुछ  लेने या पाने  लिये कुछ ऐसा पात्र होना चाहिए कि हम उसे रख सके,
अगर हमारे पास ऐसा पात्र नहीं हो तो हम कोई भी चीज लेकर भी  उसे ले नहीं पाएँगे , मतलब पात्र के अभावो में उसे रख नहीं पाएंगें।

ठीक इसी तरह हमारे और ईश्वर के  संन्दर्भ में भी  है.…
इश्वर हरदम हमे सबकुछ देने को तैयार है दुनिया कि हर चिज, पर हमारे पास उसे पाने के लिये उस प्रकार कि पात्रता हि नहीं है.……
इसलिए अगर हम आप और कोई भी ईश्वर से कुछ पाना चाहते हैं तो सर्व-प्रथम अपने आपको उसके  लायक बनाये ,
अपने आपको ऐसा पात्र बनाए  कि उस ईश्वर कि कृपा प्राप्त  कर सके।

आज के समाज के लोगों मे यही दुर्भाग्य है कि लोग सिर्फ़ ईश्वर से माँगने तक हि आपने आप को सीमीत रख लिये हैं , जबकि ईश्वर पहले से ही देने को तैयार हैं।
लोगों को तो अपने को उस के लायक यानि खुद को वैसा पात्र बनाने पे धयान देन चहिये, ताकि उसकी दि हुई कृपा को पा सके रख सके ग्रहन  कर सके।
और ऐसी पात्रता खुद को बनाने का आरम्भ  अच्छी सोच , चरित्र निर्माण  से शुरू होती है।

                                                                                                                   
                                                                                                         --------विमल  चन्द्र 


Friday 25 April 2014

मेरी मन की आवाज :-

एक सवाल उस खुदा से
कौन हूँ मै?
क्यूँ हूँ मै?
खुद की तलाश मे
उदास हूँ मै
ये न जान कर अबतक
किसलिए बनाया है तू मुझे
गिरता सम्भलता खोज रहा हूँ
अस्तित्व मै अपना
तूने ईस दुनिया मे
बसाया है जिव अनेक
क्या राज है ईस दुनिया का
क्यूँ बनाया है तू ईसे
मुझसे तेरी ये नाराजगी कैसी
तेरी जवाब ना पाकर
उदास हूँ मै
उदास हूँ मैं ।।

-----विमल  चन्द्र 

मैं वो हूँ क्यूँ नहीं जैसा हूँ मैं वैसा।


झूठ बोलते थे फिर भी सच्चे थे हम,
ये उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम

आज सच्च कहते है फिर भी झूठे है हम,
सबको अपना  कहता हूँ फिर भी गैर है हम
ये यिन दिनों की बात है
जब बच्चे नहीं रह गए हम
फर्क हुआ है क्यूँ ऐसा
मैं वो हूँ क्यूँ नहीं
जैसा हूँ मैं वैसा।

                ------विमल चन्द्र